माईंडफुलनेस का अभ्यास दिमागी कसरत है। पहला अटेंशन याने ध्यान देना और दूसरा स्वीकार करना ये दोनों इसके महत्वपूर्ण पहलु है।
अपने मन को वर्तमान क्षण मे स्थिर बनाए रखने के लिए अटेंशन यानी ध्यान चाहीये।हमारा मन हमेशा विचारों के प्रवाह मे बहता रहता है। उसे यहा और इसी क्षण मे रखने के लिए अटेंशन ट्रेनिंग महत्वपूर्ण है।
माईंडफुलनेस के एक्झरसाईझ मे अटेंशन ट्रेनिंग के विभिन्न आलबंन होते है। इस क्षण मे दिखाई दे रहा दृश्य,कान में सुनाई दे रही आवाज, नाक से मालूम हो रहा गंध और शरीर को होनेवाला स्पर्श अटेंशन का आलंबन होता है।इससे हमारे परिसर मे क्या हो रहा है इसका ज्ञान होता है।
इसी क्षण शरीर क्या कर रहा है और उसमे क्या हो रहा है यह भी अटेंशन का आलंबन होता है।
और इसी क्षण मन मे कौनसे विचार और भावनाए है यह भी हम जान सकते है।
माईंडफुलनेस ट्रेनिंग का एक मकसद वर्तमान क्षण मे शरीर,मन और परिसर मे क्या हो रहा है यह महसुस करना है। यह आसानी से नही होता।विचारों मे बह जाना मन की आदत है।उसें बारबार आलंबन पर लाना,यही अटेंशन ट्रेनिंग है। इस ट्रेनिंग से अपने मस्तिष्क मे डोरसो लॅटरल प्री फ्रंटल कोरटेक्स नाम का पार्ट सक्रिय होता है,उसमे नये कोशिकाए जनम लेती है। इससे अपना फोकस बेहतर होता है।
इस ट्रेनिंग का और एक लाभ होता है।
हमारे मन मे विचार आते है उस समय अपने मस्तिष्क मे डिफॉल्ट मोड नेटवर्क नामका पार्ट सक्रिय रहता है। निद्रा मे हम ख्वाब देखते है उस समय भी यह सक्रिय रहता है, आज के जमाने मे उसें आराम बहुत कम मिलता है।यह बढे हुए तनाव की एक वजह है।माईंडफुलनेस एक्झरसाईझ मे हम अपने मन को ज्ञानेंद्रिय से मालूम होनेवाले विषय पर लाते है या नैसर्गिक सांस से हो रही पेट या सिने की हलचल पे रखते है उस समय मस्तिष्क के इस डिफॉल्ट मोड नेटवर्क को आराम मिलता है और तनाव कम होता है। आधे मिनिट का यह अभ्यास हम दिन मे कई बार कर सकते है।
माईंडफुलनेस का दूसरा पहलु जो कुछ महसुस हो रहा है,उसका स्वीकार करना है। शरीर मे जो संवेदना है, मन मे जो भावना और विचार है, उन पर अंधी प्रतिक्रिया नही करना, यह भी मस्तिष्क की ट्रेनिंग है।अपने मस्तिष्क मे अमयगडाला नामका पार्ट भावनात्मक मस्तिष्क का हिस्सा होता है। प्रतिक्रिया करना यही उसकी आदत है। उसकी प्रतिक्रिया से मन मे गुस्सा और भय ये भावनाए पैदा होती है।
माईंडफुलनेस के अभ्यास से इस अमयगडाला की सक्रियता कम होती है।इससे अपनी भावनात्मक चतुराई (इमोशनल इंटेलिजन्स) बढती है, गुस्सा,भय,उदासीनता ऐसी घातक भावनाए कम होने लगती है। छोटे बातो से अस्वस्थ हॊना कम होता है।
इसलिए माईंडफुलनेस की अभ्यास दस साल से बडे हर एक व्यक्ति ने करनी चाहीये। दस साल से अपने मस्तिष्क का प्री फ्रंटल कोरटेक्स काम करना आरंभ करता है।माईंडफुलनेस ट्रेनिंग के लिए मस्तिष्क का यह हिस्सा आवश्यक है ।इसलिए मेंटली रिटायर्ड व्यक्तिऔर तीव्र स्किझोफ्रेनिया और डिप्रेशन से बीमार व्यक्ती के अलावा हर एक व्यक्ती माईंडफुलनेस का अभ्यास कर सकता है।
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आप अधिकाधिक समय माईंडफुल,सजग रहे ऐसी शुभ कामनाए।